Modi की सत्ता में दोबारा वापसी का जायजा लेने से पहले चुनाव प्रचार पर एक बार फिर नजर डालने की जरूरत है. 17वीं लोकसभा चुनाव प्रचार में किसी पार्टी की लहर भले ही न दिखी हो लेकिन नफरत की लहर साफतौर पर दिखी. और सबसे ज्यादा निशाने पर रहे प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी. दरअसल, नरेंद्र मोदी के विरोधी उनके समर्थकों से ज्यादा मददगार साबित हुए हैं, चाहे वो गुजरात के मुख्यमंत्री के तौर पर उनका कार्यकाल रहा हो या प्रधानमंत्री रहने का दौर. याद कीजिए 2014 में जब नरेंद्र मोदी भाजपा प्रचार समिति की कमान संभाले चुनावी अभियान में उतरते थे तो उनकी तीखी आलोचनाएं होती थीं. तब की यूपीए सरकार के मंत्रियों और कांग्रेस नेताओं ने मोदी पर इतने हमले किए कि सीमाओं तक का ध्यान नहीं रखा. मणिशंकर अय्यर का चायवाले पर तंज हो या नीच आदमी या फिर प्रियंका और राहुल गांधी के तीखे हमले.
इससे पहले पंजाब के मंत्री और ताजा-ताजा कांग्रेस में आए नवजोत सिद्धू ने कहा, 'मोदी को ऐसा छक्का मारो कि सीमा पार जाकर गिरे.' ममता बनर्जी का थप्पड़ वाला बयान हो या राहुल गांधी का ये कहना कि मोदी नफरत फैलाने वाले नेता हैं, हर बयान मोदी का मददगार बना. अगर हम गुजरात विधानसभा चुनाव की बात करें तब भी विपक्ष ने वहां के स्थानीय मुद्दों को उठाने के बजाय 'नीच', 'तू चाय बेच', 'गब्बर सिंह टैक्स', 'विकास गांडो थयो छे', जैसे नारे मोदी को कठघरे में खड़ा करने के लिए किए. लेकिन इसका उल्टा ही असर दिखा.
कहने का मतलब ये है कि मोदी से नफरत करने वाले हर नेता और शख्स को विपक्षी सम्मान देने को आतुर थे. पश्चिम बंगाल में ममता बनर्जी ने प्रियंका शर्मा नामक एक भाजपा नेता को एक मीम शेयर करने पर जेल भेज दिया. भाजपा नेता को सुप्रीम कोर्ट से जमानत मिली और उसी दिन पुलिस ने मामले में FIR लगा दी. इसके बाद मोदी ने प. बंगाल में एक चुनावी सभा में ये मुद्दा उठाया. कहा कि मैं दीदी को चुनौती देता हूं कि मेरा भद्दे से भद्दा चित्र बनाएं, मैं कोई कार्रवाई नहीं करूंगा. ये भी सच है कि सोशल मीडिया पर मोदी की बहुत धज्जियां उड़ाई गई हैं और निम्न स्तर का प्रचार उनके खिलाफ हो रहा है लेकिन इसे नजरअंदाज किया जाता रहा.
मोदी से नफरत करने वालों ने ही मोदी को फिर जिताया
Reviewed by RAVISH DUTTA
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May 23, 2019
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