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एक कड़वा सच है कि इस सारागढ़ी की लड़ाई को भारत के इतिहास में कोई जगह नही मिली ।।

एक कड़वा सच है कि इस सारागढ़ी की लड़ाई को भारत के इतिहास में कोई जगह नही मिली ।।

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बात करते हैं केसरी फ़िल्म की. इस फ़िल्म में वो सब कुछ है जो एक राष्ट्रभक्त को चाहिए होता है।
ये कोई टिपिकल कमर्शियल बॉलीवुड की फ़िल्म नहीं है जहां नायक असीमित शक्ति लिए दुश्मनों को छठी का दूध याद दिला देता है.

यह सत्य के धरातल पर बनी एक प्रेरक कहानी है. इसमें एक इंसान की शारीरिक सीमाओं का ध्यान रखते हुए यह बताया गया है कि व्यक्ति संख्या से नहीं, सोच से छोटा होता है. खासकर वो भाग आपको आभास कराएगा जब 21 सिख 10,000 अफ़ग़ानों के समक्ष ढोल बजाते हुए ललकार रहे थे. फ़िल्म के अंत में आपको पता चलेगा कि किसी भी जंग में जीत और हार से ऊपर होता है आपका पुरुषार्थ.

1897 में 10,000 अफ़ग़ानियों के सामने जिस बहादुरी के साथ सारागढ़ी के किले को बचाने के लिए 36 सिख रेजिमेंट के 21 सिख लड़ें, वो अद्वितीय है. अविश्वसनीय है. जंग लड़ना दूसरी बात है, लेकिन हार सुनिश्चित है यह जानते हुए भी सीना चौड़ा कर दुश्मन से भिड़ने वाला व्यक्ति ही भारत में ‘मर्द’ कहा जाता है. सारागढ़ी में उस समय की 36 सिख रेजिमेंट के सभी सिख उसी मर्दानगी का चेहरा है...
एक कड़वा सच है कि इस सारागढ़ी की लड़ाई को भारत के इतिहास में कोई जगह नही मिली ।।
एक कड़वा सच है कि इस सारागढ़ी की लड़ाई को भारत के इतिहास में कोई जगह नही मिली ।। एक कड़वा सच है कि इस सारागढ़ी की लड़ाई को भारत के इतिहास में कोई जगह नही मिली ।। Reviewed by RAVISH DUTTA on March 24, 2019 Rating: 5

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