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सप्ताह के दिनों का नामकरण और क्रम निर्धारण

सप्ताह के दिनों का नामकरण और क्रम निर्धारण
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रविवार के बाद सोमवार फिर मंगलवार ही क्यों शनिवार क्यो नहीं । क्या इन वारों के नामकरण और क्रम के पीछे कोई विशेष वैज्ञानिक आधार है । या यह यूँ ही नाम रख दिये गए हैं । क्या हमें विचार नहीं करना चाहिए कि हमारे पूर्वज वे महान ऋषि बिना किसी कारण या आधार के कुछ निश्चित नहीं करते थे । अतः इन दिवसों के नामकरण और क्रम के लिए भी एक निश्चित आधार है ।
इस विषय में अथवर्वेद के " अथर्व ज्योतिष" में वारों के नाम और क्रम का स्पष्ट उल्लेख प्राप्त होता है .....
आदित्या: सोमो भौमश्च तथा बुध बृहस्पति: ।
भार्गव: शनैश्चरश्चैव एते सप्तदिनाधिपा: ।।
यह ग्रँथ पाँच हजार वर्षों से भी पुराना है । अब यदि कोई पाश्चात्य सभ्यता प्रेमी यह मानता हो कि दिनों के नाम हमने पश्चिमी सभ्यता से ग्रहण किये हैं तो उनका कैलेंडर तो मात्र दो हजार वर्ष पुराना ही है । और हमारी ज्योतिष और उसका आधार गणित तो लाखों वर्षों के प्रमाण सहित मौजूद है । इसके विपरीत सारा विश्व को भारत का ऋणी होने का सौभाग्य भी प्राप्त है , क्योंकि आज के घण्टा, मिनिट और सेकण्ड के वर्तमान स्वरूप भी भारतीय पञ्चाङ्ग का ही रूप है ।
वारों का क्रम और वैदिक आधार.. हमारे ऋषियों ने विशिष्ट वैज्ञानिक आधार पर सप्ताह के वारों का क्रम सुनिश्चित किया । पृथ्वी और सूर्य से विशेष सम्बंध रखने वाले सात ग्रहों की कक्षाओं के अनुसार ही सात वार तय किये गए । जो ही आज विश्व भर में प्रचलित हैं ।वार शब्द ( वासर ) दिन का ही संक्षिप्त स्वरूप है ।
एक " अहोरात्र" ( दिन - रात) एक वासर अर्थात एक दिन होता है । अहोरात्र शब्द से ही " होरा" शब्द लिया गया है, जो कालमान की एक छोटी इकाई है । होरा एक अहोरात्र का 24वाँ भाग होता है । जिसे अब अंग्रेजी के ऑवर्स कहते हैं । दिन - रात में 24 घण्टे होते हैं । अतः एक होरा एक घँटे बराबर होता है ।इस होरा से ही वारों की गणना शुरू हुई ।यहाँ यह जानना भी आवश्यक है कि ज्योतिष शास्त्र में सम्पूर्ण गणना पृथ्वी को केंद्र मान कर की गई , जबकि वास्तव में सौर परिवार का केंद्र सूर्य ही हैं , जिनके चारों और अपनी अपनी कक्षाओं में पृथ्वी सहित सभी ग्रह परिक्रमा कर रहे हैं ।किंतु भारतीय ज्योतिष दृश्य- स्थिति को ही स्वीकारता है । पृथ्वी से देखने पर विभिन्न राशियों में से अन्य ग्रहों की भाँति सूर्य भी परिक्रमण करता हुआ सा प्रतीत होता है । इसलिए सूर्य को भी ज्योतिष में एक ग्रह माना गया ।
अंतरिक्ष मे ग्रहों की कक्षाओं की जो स्थिति है वो वास्तविक स्थिति है सूर्य , बुध , शुक्र , पृथ्वी , मङ्गल , गुरु और शनि । वास्तव में यही कक्षा क्रम सप्ताह के वारों के क्रम का आधार है ।
सृष्टि के प्रारंभिक दिन चैत्र शुक्ला प्रतिपदा रविवार को प्रातः समस्त ग्रह मेष राशि के प्रारंभिक भाग में अश्विनी नक्षत्र पर थे , इस विषय मे प्रमाण हैं " कालमाधव ब्रह्मपुराण " उसी की पंक्तियों है
चैत्र मासि जगद्ब्रह्मा ससर्ज प्रथमेहनि।
शुक्लपक्षे समग्रे तत्तदा सूर्योदये सति ।।
प्रवर्तयामास तदा कालस्य गणनामपि ।
गृहन्नागनृ तूनमासान वत्सरणवत्सराधिपान ।।
अर्थात उस दिन से गणना कर ज्योतिर्विदों ने सौर मंडल का केंद्र होने के कारण सूर्य को प्रथम होरा का स्वामी माना । फिर ग्रहों के दृश्य- कक्षानुसार दूसरी और तीसरी होरा का स्वामी क्रमशः शुक्र और बुध को स्वीकारा ।चन्द्रमा का मानव जीवन में महत्व होने के कारण उपग्रह होते हुए भी उसे चौथी होरा का स्वामी माना ।तत्पश्चात बाएँ क्षितिज से दाहिने क्षितिज की और बढ़ते हुए पँचम होरा का स्वामी शनि छठी के गुरु और सातवीं होरा का स्वामी मङ्गल को स्वीकार किया ।
इस प्रकार इन सातों ग्रहों को होरा का अधिपति मान प्रत्येक दिन सूर्योदय के समय जिस ग्रह की होरा होती है उस दिन का नाम उस ग्रह के नाम पर रख दिया गया ।
क्योंकि एक अहोरात्र में 24 होरा ( 24 घँटे) होती हैं, अतः दूसरे दिन का नाम 25 वीं होरा के अधिपति के नाम पर रख दिया गया , और 25 वीं होरा को उस दिन की प्रथम होरा मानते हुए अगली 25 वीं होरा के स्वामी के नाम पर तृतीय वार का नाम रख दिया गया । इस क्रम से सातों वारों का नामकरण हुआ ।सूर्य से गणना करने पर 25 वीं होरा का स्वामी चन्द्रमा होता है , अतः रविवार से अगला दिन चन्द्रवार हुआ । चन्द्रवार से गणना करने पर 25 वी होरा के स्वामी मंगल हुए तो मंगलवार तय किया । इसी प्रकार सात वारों का क्रम एवम नाम निर्धारित किया गया ।
सप्ताह के दिनों का नामकरण और क्रम निर्धारण सप्ताह के दिनों का नामकरण और क्रम निर्धारण Reviewed by RAVISH DUTTA on February 03, 2019 Rating: 5

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