पुलवामा हमले के बाद राज्य शासन के सुरक्षा वापस लेने के फैसले ने अलगाववादियों को भीतर से हिला दिया है। यह कार्रवाई हुर्रियत के दोनों गुटों को प्रत्यक्ष-परोक्ष रूप से प्रभावित करते हुए कश्मीर मुद्दे पर बने गतिरोध को दूर करने से लेकर भाजपा की सियासत को फायदा पहुंचाएगी। अलगाववादियों को रणनीति दोबारा तय करने पर मजबूर होना पड़ेगा। हुर्रियत नेताओं की सुरक्षा वापसी का संकेत केंद्रीय गृहमंत्री राजनाथ सिंह ने शुक्रवार को दे दिया था।

उन्होंने श्रीनगर में कहा था कि यहां कुछ लोग पाकिस्तान और आइएसआइ से पैसा लेते हैं। वह लोग यहां हालात बिगाड़ रहे हैं। इनमें कुछ लोगों को सरकारी सुरक्षा मिली है। इस पर दोबारा विचार किया जाएगा। राज्यपाल के दिल्ली पहुंचने के बाद ही राज्य प्रशासन ने शनिवार को अलगाववादियों की सुरक्षा की समीक्षा करते हुए उन्हें आवंटित सुविधाओं का ब्योरा तैयार कर दिया था।
रविवार सुबह राज्य गृह विभाग ने केंद्र की हरी झंडी मिलते ही मीरवाइज मौलवी उमर फारूक, बिलाल गनी लोन, यासीन मलिक, हाशिम कुरैशी, प्रो. अब्दुल गनी बट और शब्बीर शाह का सुरक्षा कवच हटा दिया। अंजुमन-ए-शरियां-शिया के चेयरमैन आगा हसन बडगामी, फजल-हक-कुरैशी और एक पूर्व हिज्ब कमांडर के अलावा दो से तीन अन्य हुर्रियत नेताओं को भी सरकारी सुरक्षा मिली है।
अलगाववादियों के साथ बतौर अंगरक्षक तैनात अधिकांश पुलिस कर्मियों को आसानी से नहीं पहचाना जा सकता है, क्योंकि यह उनके साथ उनके कार्यकर्ताओं की तरह रहते हैं। कट्टरपंथी सैयद अली शाह गिलानी, अशरफ सहराई और जेकेएलएफ चेयरमैन मोहम्मद यासीन मलिक को सुरक्षा नहीं मिली है। इसकी पुष्टि खुद भाजपा के राष्ट्रीय महासचिव राममाधव ने की है।
अलगाववादियों की सुरक्षा हटाने के मायने?
Reviewed by RAVISH DUTTA
on
February 18, 2019
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